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गृहस्थ जीवन कैसे जीना चाहिए । जीने की राह कैसी हो

गृहस्थ जीवन कैसे जीना चाहिए

तुरा न तीखा कूदना, पुरूष नहीं रणधीर।

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नहीं पदमनी नगर में, या मोटी तकसीर।।

भावार्थ:- कबीर जी ने बताया है कि गरीबदास! जिस नगर व देश में तुरा (घोड़ा) तेज दौड़ने व ऊँचा कूदने वाला नहीं है और नागरिक रणधीर (शूरवीर) नहीं हैं और जिस देश व नगर में पद्मनी यानि पतिव्रता स्त्री नहीं है तो यह मोटी तकसीर (बहुत बड़ी गलती) है यानि कमी है। इस प्रकार का चरित्रवन स्त्री-पुरूष दोनों का होना अनिवार्य है।

विवाह के पश्चात् ससुराल में कुछ लड़कियाँ सर्व श्रृंगार करती हैं। सज-धजकर गलियों से गुजरती हैं। अजीबो-गरीब हरकत करती हैं। असहज लगने वाले भड़कीले-चमकीले वस्त्र पहनकर बाजार या खेतों में या पानी लेने नल या कूँऐ पर जाती हैं। उनका उद्देश्य क्या होता है? स्पष्ट है कि अपने पति के अतिरिक्त अन्य पुरूषों को अपनी ओर आकर्षित करना। अपनी सुंदरता तथा वैभव का प्रदर्शन करना जो एक अच्छी बहू-बेटी के लक्षण नहीं हैं। यदि कहें कि पति को प्रसन्न करने के लिए ऐसा करती हैं तो वे घर तक ही सीमित रहती तो अच्छा होता, परंतु ऐसे लक्षण मन में दोष के प्रतीक होते हैं।

साधारण वस्त्र पहनने चाहिए, चाहे मंहगे हों, चाहे सस्ते। बहन-बेटी-बहू की नजर सामने 12 फुट तक रहनी चाहिए। चलते-बैठते, उठते समय ध्यान रखे कि कोई ऐसी गतिविधि न हो जाए जो किसी के लिए उत्प्रेरक हो। स्त्री की गलत विधि से लफंडर लोगों का हौंसला बढ़ता है। वे परेशान करते हैं। महिला का हँस-हँसकर बातें करना उत्प्रेरक तथा असभ्य होता है जो सामाजिक बुराई है। जैसे बहन-बेटी, बहू यानि युवती अपने परिजनों के साथ रहती है। ऐसा ही आचरण घर से बाहर होना चाहिए। उसकी प्रशंसा सभ्य समाज किया करता है। अन्य युवाओं को उसका उदाहरण बताते हैं। यदि पैट्रोल को चिंगारी नहीं मिलेगी तो वह विस्फोटक नहीं होता।

इसके विपरीत उपरोक्त गतिविधि करना समाज में आग लगाना है। यह बात युवतियों तथा युवाओं दोनों पर लागू होती है।

जवानी बारूद की तरह होती है। यदि कोई चिंगारी लग जाए तो सर्वनाश हो जाता है। यदि चिंगारी नहीं लगे तो वर्षों सुरक्षित रहती है।

प्रत्येक पुरूष चाहता है कि मेरी बेटी-बहन-बहू अच्छे चरित्र वाली हो। गाँव-नगर में कोई यह न कहे कि उनका खानदान ऐसा-वैसा है।

जब हम किसी युवती को देखते हैं और मन में दोष उत्पन्न हो तो तुरंत विचार करें कि यदि कोई हमारी बेटी, बहन, बहू के विषय में गलत विचार करे तथा दुष्कर्म के उद्देश्य से कुछ अटपटी गतिविधि (व्यंग्य करके अपने दुष्विचारों को प्रकट करे, गलत संकेत करे, आँखों को चटकाए-मटकाए, टेढ़ी-नजर से देखे, ऐसी गलत हरकत) करे तो कैसा लगेगा। उत्तर स्पष्ट है कि टाँगें तोड़ देंगे। जो निर्बल हैं, वो एकान्त में बैठकर रोऐंगे। उस समय विचार करें कि:-

जैसा दर्द अपने होवे, ऐसा जान बिराणै।

जो अपनै सो और कै, एकै पीड़ पिछानै।।

समाधान:- परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि:-

कबीर, परनारी को देखिये, बहन-बेटी के भाव।

कह कबीर काम (sex) नाश का, यही सहज उपाय।।

यौन उत्पीड़न के प्रेरक:- फिल्में, जिनमें नकली, बनावटी कहानियाँ तथा अदाऐं दिखाई जाती हैं जिनको देखकर जवान बच्चे उसी की नकल करके बेशर्म होने लगते हैं। जैसी गतिविधि फिल्म में दिखाई जाती है, वैसी गतिविधि न घर में, न गली में, न सभ्य समाज में की जा सकती हैं। तो उनको देखने का उद्देश्य क्या रह जाता है? कुछ नहीं। केवल बहाना है मनोरंजन। वही मनोरंजन समाज नाश का मूल कारण है। मेरे (लेखक के) अनुयाई बिल्कुल भी फिल्म नहीं देखते। अश्लील रागनी, फिल्मी गाने, सांग (स्वांग) तथा अश्लील चर्चा जो निकम्मे युवा करते हैं। उनकी संगत में अच्छे युवा भी प्रेरित होकर बकवाद करने लग जाते हैं। कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि:- गृहस्थ जीवन कैसे जीना चाहिए

कथा करो करतार की, सुनो कथा करतार।

काम (sex) कथा सुनों नहीं, कह कबीर विचार।।

भावार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने समझाया है कि या तो परमात्मा की महिमा का गुणगान (कथा) करो या कहीं परमात्मा की चर्चा (कथा) हो रही हो तो वह सुनो। काम यानि अश्लील चर्चा कभी न सुनना। कबीर जी ने यह विचार यानि मत बताया है।

 

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My name is Sonu Patel i am from india i like write on spritual topic

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