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जिस मालिक ने सृष्टि रचाई भजन lyrics

सांवरिया री महिमा ऐसी है अगम अपार। जिस मालिक ने सृष्टि रचाई भजन lyrics

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जब जब भीड़ पड़े भक्तों पर जब जब भार बढै भूमि पर।
आप लेवे अवतार सांवरिया री महिमा ऐसी है अगम अपार।। टेर ।।

(1) जिस मालिक ने सृष्टि रचाई वह साहेब सबके माही।
एक पलक में खलल उपाया जिसका कोई शुमार नहीं।
आपे ही थापे आप ही उथापे औरों की सुनता नाही।
जो कोई उनको अरज करे तो बिन मर्जी सुनता नाहीं।
मर्जी उस पर ईश्वर रहता अपने ही आधार।।

{2} नेम करें कोई धर्म करें कोई तीर्थों को जाता भाई।
तरह-तरह की देख मूर्तियां अकल क्यों माने नाहि।
मनोकामना पूरी करदे ऐसा है समर्थ साईं।
जड़ पत्थर की है सब पूजा अचल देव दरसे नाही।
बाहर भीतर जड़ चेतन मे राच रह्यो एकसार।।

[3] ज्ञान करे कोई ध्यान धरे कोई उल्टा स्वास चढ़ाता है।
दसों इंद्रियां दमन करके प्राण अपान मिलाता है।
खेसर भूषण चाचर उनमुन अगोसरी को ध्याता है।
शशि भाण का साध सरोदा आठोही पोहर चलाता है।
आठ पहर की चौसठ घड़ियां लगे रह्यो इकतार।।

【4】 पाचू इंद्री पांचोहि प्राणा ताकू बंद लगाता है।
मुनि होकर मुख नहीं बोले सैनी में समझाता है।
उड़ जाता कोई गल जाता कोई अग्नि में जल जाता है।
हजार वर्ष तक देहि राख ले कोई पार नहीं पाता है।
खड़ा खड़ा कोई पड़ा पड़ा हरदम है हुशियार।।

(5) ज्ञान ध्यान में जानू नाही सेवा युक्ति साधूं नाही।
तीन लोक में हुकुम आपका पता एक हीलता नाही।
आप हो जुगत मुगत के दाता उबारलो शरणा माही।
धर्मी दास की अर्जी विनती बेड़ा लगा दो पार।।

जिस मालिक ने सृष्टि रचाई भजन lyrics धर्मिदास जी का भजन कल्याण भारती की आवाज में सुनने के लिए 【 क्लिक करें

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यह जिस मालिक ने सृष्टि रचाई भजन lyrics धर्मिदास जी महाराज द्वारा रचित सत भक्ति पर आधारित है धर्मिदास जी इस भजन के माध्यम से समझाना चाहते हैं कि जिस परमात्मा ने इस पूर्णब्रह्म परमेश्वर ने यह सृष्टि की रचना की है वह परमात्मा सर्व घट व्यापक है और सबके अंदर विराजमान है वहीं वासुदेव है वहीं तीनो लोको में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है उस परमात्मा ने एक ही पलक के अंदर कितना यह सुंदर विश्व खलक संसार पैदा किया आज तक इसके और चोर का पता नहीं है किसी को वह परमात्मा अपनी मर्जी से ही इस विश्व की उत्पत्ति करता है अपनी इच्छा से इसका ले कर लेता है वह स्वयं इच्छा पर निर्भर है इस परमात्मा की महिमा का गुणगान कहां तक करें इसकी महिमा अगम अपार है इसका कोई बार-बार नहीं इनकी महिमा हम तुछ बुद्धि जीव क्या कर सकते हैं उस परमात्मा को अपनी बनाई हुई यह सृष्टि इतनी प्यारी है कि इस सृष्टि में कोई भी विधर्मी परमात्मा की बनाई हुई सृष्टि के साथ छेड़छाड़ करता है तो मालिक उसको ठीक करने के लिए इस संसार के अंदर अवतरित होता है और उन विधर्मियों को दंड देकर सिस्टम को सिद्धांत को वापस स्थापित करता है इस संसार में परमात्मा की प्यारी आत्माओं पर और धरती पर भोज बढ़ता है पाप का तब परमात्मा अवतार धारण करते हैं गीता में भी इसका प्रमाण है कि यदा यदा ही धर्मस्य तब ग्लानिर्भवति भारत ।अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। ऐसे परमपिता परमात्मा को प्रसन्न करने के लिए लोग न जाने क्या-क्या क्रियाएं करते हैं कोई नियम धारण करते हैं कोई धर्म धारण करते हैं कोई तीर्थों पर जाकर परमात्मा को प्रसन्न करना चाहते हैं संसार के अंदर तरह-तरह की मूर्तियां देखकर दिमाग काम करना बंद कर देता है लेकिन हमारी मनोकामना तो केवल पूर्ण परमात्मा समर्थ साहेब ही कर सकते हैं क्योंकि वह परमात्मा इस संसार के बाहर भीतर सब जगह हरि सर्वत्र समाना परमात्मा सब में एक समान व्यापक है जिस मालिक ने सृष्टि रचाई भजन lyrics
उस परमात्मा को भक्तजन कोई ज्ञान से कोई ध्यान से कोई सांसों की क्रियाओं से कोई अपनी दसों इंद्रियों को दमन करके हठयोग करके रोक रोके रखने को दमन कहते हैं कोई प्राणों को रेचक पूरक कुंभक करके अपन में मिलाते हैं जैसे वह अपने कुंडलिनी शक्ति को जागृत करते हैं कोई इन 5 मुद्राओं की साधना करते हैं खेचर भूचर चाचर उन्मून अगोचर आदि मुद्राओं की साधना करते हैं कोई स्वरोदय साधना करते हैं आठवीं पर उसमें लगे रहते हैं इनर्ट पैर में 64 घड़ियां होती है इन 64 गड़ियों में अविलंब एकसार लगे हुए हैं फिर भी उस परमात्मा की महिमा का वार्पाठ कोई जान नहीं सकता
कोई मात्मा कोई भगत अपनी पांच इंद्रियों एवं पांचो प्राणों की गति को अवरुद्ध करके रोकता है हठयोग से कोई मुनि हो करके बैठे हैं अपने प्राणशक्ति को संचित कर रहे हैं इशारों से समझाते हैं कोई-कोई महात्माओं को ऐसी सिद्धियां प्राप्त हो जाती है अपने शरीर को गला देते हैं उड़ा देते हैं अग्नि में जला देते हैं कोई-कोई महात्मा आपने देखो अपने शरीर को हजारों बरस तक साधना करके रख लेते हैं फिर भी उस परमात्मा के लीला का बार-बार नहीं प्राप्त करते पार नहीं पा सकते कोई उसके प्रेम में इतना विलीन है कि खड़ा है तो खड़ा ही है कोई पड़ा है तो पढ़ा ही है कोई हरदम चतुर है अपने कर्मों में कि मुझे परमात्मा को प्राप्त करना है जिस मालिक ने सृष्टि रचाई भजन lyrics
लेकिन धर्मी दास जी महाराज परमात्मा से एक विनम्र प्रार्थना करते हैं एक अरदास करते हैं कि हे मालिक यह ज्ञान ध्यान मैं कुछ नहीं जानता यह सेवा पूजा या योग युक्तियां मुझे नहीं साधनी क्योंकि हे मालिक जब तीनों लोगों में आपका ही हुक्म चलता है जर्रे जर्रे में है झांकी भगवान की जब आप ही मेरे चारों और है मेरे अंदर और मेरे बाहर भी आप हो तो फिर मैं आपको प्रसन्न में रख करने के लिए इतनी कठोर साधना है क्यों करो जब चींटी के पैर में बंधी हुई पायल की आवाज भी आप सुन रहे हो सुनते हो तो आप को प्रसन्न करने के लिए इतनी कठोर साजन आए मैं क्यों करूं आप ही युक्ति और मुक्ति के दाता हो मैं आपकी शरण में हूं मेरा उद्धार आप ही करो मालिक धर्मी दास जी महाराज की यह विनम्र अपना है की है मालिक मेरा बेड़ा पार लगा दो मुझे पूर्ण मुक्ति दिला दो सत्य सनातन परमधाम सारस्वत स्थान अमरलोक सतलोक में स्थाई स्थान प्राप्त करवा दो जिस मालिक ने सृष्टि रचाई भजन lyrics

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राजिया रा सौरठा

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