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भक्त के लक्षण भक्ति क्या है भक्ति की परिभाषा शास्त्र अनुसार

भक्त के लक्षण

भक्त के लक्षण

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नमस्कार दोस्तों आप अच्छे होंगे आज हम भक्ति के उन मूलभुत चार महत्वपूर्ण लक्षणों के बारे में जानेंगे जो एक भक्ति करने वाले भक्त के लिए बहुत ही जरुरी है! भक्तिशास्त्र के आचार्यों ने भक्ति को प्रेमस्वरूप बतलाया है। शांडिल्य ने अपने भक्तिसूत्र में भक्ति की परिभाषा देते हुए कहा है कि ईश्वर में की गई परानुरक्ति भक्ति है! नारद ने भी भगवान के प्रति किए गए परम प्रेम को भक्ति कहा है। मधुसूदन सरस्वती ने भक्ति का लक्षण करते हुए बतलाया है कि भगवद्धर्म के कारण द्रुत चित्त की परमेश्वर के प्रति धारावाहिक वृत्ति को भक्ति कहते हैं। पुराणों आदि में भी इसी प्रकार की भक्ति का निरूपण किया गया है। विष्णु पुराण में भक्त ने भगवान से प्रार्थना की है- ‘हे भगवान! जिस प्रकार युवतियों का मन युवकों में और युवकों का मन युवतियों में रमण करता है, उसी प्रकार मेरा मन तुममें रमण करे।'[9] *इसी तरह की प्रार्थना तुलसीदास ने भी भगवान राम से की है- ‘हे रघुनाथ राम ! जैसे कामियों को कामिनी प्रिय होती है, जैसे लोभियों को धन प्रिय होता है, वैसे ही तुम मुझे प्रिय लगो। भक्तों ने लौकिक जीवन से इस प्रकार की उपमाएं भगवान के प्रति प्रेम की अतिशय आसक्ति सूचित करने के लिए दी हैं। रसखान भी परमप्रेम को भक्ति मानते हैं। प्रेम की अतिशयता और अनंयता का प्रतिपादन करने के लिए भक्तों ने चातक का आदर्श उपस्थित किया है। रसखान ने भी इस आदर्श में अपनी आस्था प्रकट की है
प्रथम अपने पुज्य परमात्मा को हर पल अपने सदगुरु के बताए हुए तरीके से स्मरण (याद) करना चाहिए “कुंज कुरड हर हेत जपे” जिस तरह एक कुरड़ पक्षी अपने अंडो को हजारों किलोमीटर दूर से भी अपने ध्यान तथा अपने कुरड़ कुरड़ की आवाज से पका देती है इसी प्रकार एक भक्त को अपने भगवान के प्रति समर्पित रहना चाहिए दूसरे नंबर पर एक भक्त में दया धर्म का होना अति आवश्यक है “दया धर्म हृदय बसे बोले अमृत बैन। तेई ऊंचे जानिए जिनके निचे नैन।। तीसरे नंबर पर स्वार्थ भावना से रहित
परोपकार यानी किसी जरूरत मन्द व्यक्ति की मदद करना (गलत काम में साथ और व्यसन में साथ परोपकार की गिनती में नही आता) तीसरे नंबर पर दान देना दान को अपने मत अनुसार नहीं देकर अपने सद्गुरु के बताएं तरीके से देना चाहिए क्योंकि मन मुखी होकर दिए हुए दान का जो प्रतिफल होता है वह अपने हित में नहीं होता वैसे आप दान को दे रहे हैं तो उसका प्रतिफल तो अवश्य मिलेगा लेकिन जिस प्रकार बाल्टी का पानी तो एक है लेकिन अगर वही पानी नीम के अंदर डाल दे तो कड़वा हो जाता है अगर उसी पानी को गन्ने के अंदर डाल देने पर वही पानी मीठे में बदल जाता है हमारे दान को हित में बदलने के लिए उस दान को अपने सच्चे गुरु के आदेशानुसार देना चाहिए जिससे उस दान की वैल्यू 100% शुद्ध हो जाती है यह दान देने का सही तरीका है:- भक्त के लक्षण
फलीभूत दानम शुभम पात्र दयो
यथा बीज बोयो सु क्षेत्र मंजारी कुपात्रे मंजारी दीयो दान ऐसे
कुक्षेत्रे मंजारी बोयो बीज जैसे
चौथा भक्तों को अपने मन को वशीभूत रखना चाहिए क्योंकि मन ही का खेल है सब “मन करी माया विस्तरी आत्म आत्म दोष”
जन्म और मृत्यु का मूल कारण मन है इसलिए इस मन को अपने वशीभूत करके ही जन्म और मरण से बसा जा सकता है और इस मन को वशीकरण करने का सही मंत्र सच्चे सतगुरु के पास मिलता है और कोई उपाय नहीं है इस मन को समझाने का एकमात्र उपाय सत्य नाम है:- भक्त के लक्षण

“कबीर मनवा एक है भावे जहां लगाएं। भावे हरि की भक्ति कर भावे विषय रस चोंज।।
काम(वासना)क्रोध से जहां तक संभव हो बचने की कोशिश जरूर करें और अपने बुद्धि को हमेशा शुद्ध रखे सकारात्मक दृष्टि कोण अपनाएं गाली को ज्ञान मै बदलने की ताकत आपमें है अपनी बुद्धि को हमेशा दूषित होने से बचाए रखना इस संसार की आशा और तृष्णा को छोड़कर अपने मन को भक्ति मार्ग में लगाएं क्योंकि शाश्वत सुख आपको वहीं मिलेगा यह संसार तो और इसके सुख उस ओस के बूंद वाले पानी के समान क्षणभंगुर है यह संसार उस मेले के समान क्षणभंगुर है जो 10 से 15 दिन में समाप्त हो जाता है जिसने मेला देख रखा है वह अपने मस्तिष्क से कल्पना करके देख सकता है सूक्ष्म वेद में भक्त को कैसे रहना चाहिए यह बताया गया है भक्तों के लिए टकसाल ज्ञान है यह सब लक्षण आपके अंदर है तो आप सही मार्ग पर है गुरु की आज्ञा आवही गुरू की आज्ञा जाएं। कहे कबीर ता दास को तीन लोक भय नाही।। सच्चे गुरू की क्या पहचान है जानने के लिए पढ़िए हमारी पोस्ट सच्चे संत के क्या लक्षण है वेदों में आशा करता हूं यह पोस्ट आपको जरूर पसंद आई होगी जिसमें एक भक्त में क्या गुणवत्ता होती है बताने की कोशिश की है 🙏🏻 धन्यवाद🙏🏻

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My name is Sonu Patel i am from india i like write on spritual topic

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