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गज और ग्राह की कथा

Gaj Or Grah Ki Katha

gaj or grah ki katha
Gaj Or Grah Ki Katha

नमस्कार दोस्तों आशा करता हूं कि आप अच्छे होंगे आज मैं आपको सूक्ष्म वेद से प्रमाणित परमात्मा के मुखारविंद से उच्चरित बहुत ही ज्ञानवर्धक भक्ति रचना सुनाऊंगा नी जिसमें आप ररंकार जाप क्या है इसके बारे में जानेंगे आपने इस भक्ति मार्ग में ररंकार धून ररंकार जाप इसके बारे में तो जरूर सुना होगा तो आज हम इस विषय में ररंकार धुन ररंकार जाप क्या है इसके विषय में एक बहुत ही सुंदर भक्ति रचना के माध्यम से जानेंगे इस कथा के माध्यम से इस पर प्रकाश डालते हैं एक बार हा हा हू हू नाम के दो तपस्वी थे कई हजारों साल तक  तप करके  अपनी तपस्या की शक्ति का परीक्षण के लिए ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और उन्हें पूछते हैं की हे ब्रह्मा जी हम दोनों में से तपस्या की शक्ति किसमें अधिक है और किस में कम ब्रह्मा जी ने सोचा कि एक की अधिक और एक की कम बताने पर फालतू की जान जोखिम में डालना ऐसा सोचकर ब्रह्मा जी ने विष्णु जी के पास विष्णु जी ने शिवजी के पास शिव जी ने एक मतंग ऋषि के पास भेज दिया हा हा हू हू इधर मतंग ऋषि के पास आते हैं आश्रम में प्रवेश करते हैं और अन्य ऋषि से मतंग ऋषि के बारे में पूछते हैं तो वह ऋषि मतंग ऋषि की तरफ इशारा करके बताते हैं कि इधर दोनों की नजर मतंग ऋषि के ऊपर पड़ती है इधर मतंग ऋषि जो है वह बहुत ही डीलडोल के धनी अच्छे हटे कट्टे शरीर वाले थे। Gaj Or Grah Ki Katha

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दोनों ने मन में सोचा कि यह तो अच्छा हाथी की तरह पड़ा है दूसरे ने सोचा कि बड़ा ही मगरमच्छ के जैसा है दोनों ऋषि से बोलते हैं कि महाराज यह बताएं कि हम दोनों में से किसकी तपस्या में शक्ति ज्यादा है और  किसमें कम इधर मतंग ऋषि ने अपनी दिव्य दृष्टि से सिद्धि बल से उनके मन की वृत्ति को पढ़ लिया था और कहने लगे अच्छा बताऊं किसकी तपस्या की शक्ति अधिक है तुम क्या सोच रहे थे जब तुमने मुझे देखा था कि मैं तुम्हें हाथी जैसा लग रहा हूं और तुमको मगरमच्छ जाओ फिर अपना फैसला खुद करो तुम हाथी और तुम मगरमच्छ बन जाओ ऐसा श्राप दे दिया फिर हा हा हू हू का स्थूल शरीर नष्ट होते ही वह एक हाथी बना और दूसरा मगरमच्छ फिर एक दिन हाथी पानी पीने नदी किनारे जाता है उधर वह मगरमच्छ तैयार ही बैठा था उसने हाथी का पैर पकड़ लिया अब दोनों में खिंचा तान शुरू हुई ऐसा करते करते 10,000 वर्ष बीत गए आखिर हाथी हार गया मगरमच्छ ने हाथी को अंदर खींच लिया अपनी मौत को नजदीक देख हाथी ने परमात्मा को याद किया इतनी कसक से हाथी ने अपने भगवान को याद किया भगवान विष्णु हाथी की उस (ररंकार धुन) दर्द भरी धुन उस बड़े कसक से उसने परमात्मा को याद किया अपने सच्चे सतगुरु सेे प्राप्त सच्चे मंत्र को इस अवस्था में जाप करना (ररंकार जाप कहलाता है) वह पुकार को सुनकर गरुड़ से भी तेज अपने भक्तों की लाज रखने हेतु अपना सुदर्शन चक्र चला कर उस हाथी को अपने भक्तों को बचाया और उस अपने विमान में बैठा कर अपने निजधाम बैकुंठ में ले गए साथ में ग्राह को भी ले गए कहते हैं:- gaj or grah ki katha

जब लग गज अपनों बल बर्तियों नेक सरयू नहीं काम।निर्बल होए बलराम पुकारयू आयो  आधे नाम।।

जब तक हाथी ने अपना बल प्रयोग किया तब तक उसका कार्य सिद्ध नहीं हुआ जैसे ही उसने अपने बल का प्रयोग बंद करके एक परमात्मा पर आश्रित हो अपना सब्बल त्याग कर उस परमेश्वर पर समर्पित हो गया कि हे प्रभु चाहे मारो चाहे तारो आपकी मर्जी ऐसी स्थिति में निर्बल हो करके उस परमात्मा को याद किया ऐसी स्थिति में उस परमात्मा ने उसकी पुकार तत्काल सुनी यहां तक कि भगवान विष्णु ने अपने गरुड़ को भी त्याग दिया उसको बचाने के लिए जब अपनी स्पीड भी कम लगी तो सुदर्शन चक्र चलाकर गज को फंदे से बचाया

एक वाणी में भी लिखीयो है की:- Gaj Or Grah Ki Katha

गज और ग्राह लड़े जल भीतर लड़ते-लड़ते गज हारी।तिलभर सूंड रही जल बाहर राम ही राम  पुकारी।।

सुनी पुकार वाहर चढ गज की  गरुड़ तजी असवारी। चक्र चलावे दाता फंद काटिया डूबतड़ा गज तारी।।

तू ही तू ही तूतकार थी ररंकार  धुन ध्यान। जिन यो साज बनाईया उनको ले पहचान।।

गर्भ में कबुल्यो भक्ति बाहर आए भूली गियों किन्हो न भजन क्षण एक हरि नाम को।

महल अटारी सुत सहोदर वित्त नारी निश दिन करत गुलामी बिना दाम के।

बिन हरि भजे चतुराई जीव दृग नर संग नहीं जात तेरे कोड़ी ही च दाम के।

कहे कवि गंग मन माही तो बिचारी देख मुदी लेहु आंख तब लाख कौन काम के।। gaj or grah ki katha

जब हम माता के गर्भ में उल्टे लटके हुए होते हैं उस गर्भ नर्क में इस जीव को इतनी पीड़ा होती है उस पीड़ा से करहा रहा था परमात्मा को पल पल याद करता था और उस गर्ब नर्क से निकालने की प्रार्थना करता था और कॉल वचन भरता था की हे परमात्मा मैं आपको एक पल भी नहीं भूलूंगा एक बार आप इस नर्क से मुझे बाहर निकाले बाहर आते ही तू इस माया की चकाचौंध में अपने उस परमपिता परमात्मा को परम हितेषी परमात्मा को भूल बैठा है उसको पहचान वही तेरा अपना है Gaj Or Grah Ki Katha

मैं आशा करता हूं दोस्तों यह भक्ति रचना आपको अच्छी लगी होगी अगर आपको यह भक्ति रचना अच्छी लगी है तो कृपया एक बार कमेंट करके जरूर बताएं। धन्यवाद!

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