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तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई । तम्बाकू की उत्पत्ति कथा

तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई कथा

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एक ऋषि तथा एक राजा साढ़ू थे। एक दिन राजा की रानी ने अपनी बहन ऋषि की पत्नी के पास संदेश भेजा कि पूरा परिवार हमारे घर भोजन के लिए आऐं। मैं आपसे मिलना भी चाहती हूँ, बहुत याद आ रही है। अपनी बहन का संदेश ऋषि की पत्नी ने अपने पति से साझा किया तो ऋषि जी ने कहा कि साढ़ू से दोस्ती अच्छी नहीं होती। तेरी बहन वैभव का जीवन जी रही है। राजा को धन तथा राज्य की शक्ति का अहंकार होता है। वे अपनी बेइज्जती करने को बुला रहे हैं क्योंकि फिर हमें भी कहना पड़ेगा कि आप भी हमारे घर भोजन के लिए आना। हम उन जैसी भोजन-व्यवस्था जंगल में नहीं कर पाऐंगे। यह सब साढ़ू जी का षड़यंत्रा है। आपके सामने अपने को महान तथा मुझे गरीब सिद्ध करना चाहता है। आप यह विचार त्याग दें। हमारे न जाने में हित है। परंतु ऋषि की पत्नी नहीं मानी। ऋषि तथा पत्नी व परिवार राजा का मेहमान बनकर चला गया। रानी ने बहुमूल्य आभूषण पहन रखे थे। बहुमूल्य वस्त्रा पहने हुए थे। ऋषि की पत्नी के गले में राम नाम जपने वाली माला तथा सामान्य वस्त्रा साध्वी वाले जिसे देखकर दरबार के कर्मचारी-अधिकारी मुस्कुरा रहे थे कि यह है राजा का साढ़ू। कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली। यह चर्चा ऋषि परिवार सुन रहा था। भोजन करने के पश्चात् ऋषि की पत्नी ने भी कहा कि आप हमारे यहाँ भी इस दिन भोजन करने आईएगा। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

निश्चित दिन को राजा हजारों सैनिक लेकर सपरिवार साढ़ू ऋषि जी की कुटी पर पहुँच गया। ऋषि जी ने स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र से निवेदन करके एक कामधेनु (सर्व कामना यानि इच्छा पूर्ति करने वाली गाय, जिसकी उपस्थिति में खाने की किसी पदार्थ की कामना करने से मिल जाता है, यह पौराणिक मान्यता है।) माँगी। उसके बदले में ऋषि जी ने अपने पुण्य कर्म संकल्प किए थे। इन्द्र देव एक कामधेनु तथा एक लम्बा-चैड़ा तम्बू भेजा और कुछ सेवादार भी भेजे। टैण्ट के अंदर गाय को छोड़ दिया। ऋषि परिवार ने गऊ माता की आरती उतारी। अपनी मनोकामना बताई। उसी समय छप्पन (56) प्रकार के भोग चांदी की परातों, टोकनियों, कड़ाहों में स्वर्ग से आए और टैण्ट में रखे जाने लगे। लड्डू, जलेबी, कचैरी, दही बड़े, हलवा, खीर, दाल, रोटी (मांडे) तथा पूरी, बुंदी, बर्फी, रसगुल्ले आदि-आदि से आधा एकड़ का टैण्ट भर गया। ऋषि जी ने राजा से कहा कि भोजन जीमो। राजा ने बेइज्जती करने के लिए कहा कि मेरी सेना भी साथ में भोजन खाएगी। घोड़ों को भी चारा खिलाना है। ऋषि जी ने कहा कि प्रभु कृपा से सब व्यवस्था हो जाएगी। पहले आप तथा सेना भोजन करें। राजा उठकर भोजन करने वाले स्थान पर गया। वहाँ भी सुंदर कपड़े बिछे थे। राजा देखकर आश्चर्यचकित रह गया। फिर चांदी की थालियों में भिन्न-भिन्न प्रकार के भोजन ला-लाकर सेवादार रखने लगे। अन्नदेव की स्तुति करके ऋषि जी ने भोजन करने की प्रार्थना की। राजा ने देखा कि इसके सामने तो मेरा भोजन-भण्डारा कुछ भी नहीं था। मैंने तो केवल ऋषि-परिवार को ही भोजन कराया था। वह भी तीन-चार पदार्थ बनाए थे। राजा शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। खाना खाते वक्त बहुत परेशान था। ईष्र्या की आग धधकने लगी, बेइज्जती मान ली। सर्व सैनिक खाऐ और सराहें। राजा का रक्त जल रहा था। अपने टैण्ट में जाकर ऋषि को बुलाया और पूछा कि यह भोजन जंगल में कैसे बनाया? न कोई कड़ाही चल रही है, न कोई चुल्हा जल रहा है। ऋषि जी ने बताया कि मैंने अपने पुण्य तथा भक्ति के बदले स्वर्ग से एक गाय उधारी माँगी है। उस गाय में विशेषता है कि हम जितना भोजन चाहें, तुरंत उपलब्ध करा देती है। राजा ने कहा कि मेरे सामने उपलब्ध कराओ तो मुझे विश्वास हो। ऋषि तथा राजा टैण्ट के द्वार पर खड़े हो गए। अन्दर केवल गाय खड़ी थी। द्वार की ओर मुख था। टैण्ट खाली था क्योंकि सबने भोजन खा लिया था। शेष बचा सामान तथा सेवक ले जा चुके थे। गाय को ऋषि की अनुमति का इंतजार था। राजा ने कहा कि ऋषि जी! यह गाय मुझे दे दी। मेरे पास बहुत बड़ी सेना है। उसका भोजन इससे बनवा लूंगा। तेरे किस काम की है? ऋषि ने कहा, राजन! मैंने यह गऊ माता उधारी ले रखी है। स्वर्ग से मँगवाई है। मैं इसका मालिक नहीं हूँ। मैं आपको नहीं दे सकता। राजा ने दूर खड़े सैनिकों से कहा कि इस गाय को ले चलो। ऋषि ने देखा कि साढ़ू की नीयत में खोट आ गया है। उसी समय ऋषि जी ने गऊ माता से कहा कि गऊ माता! आप अपने लोक अपने धनी स्वर्गराज इन्द्र के पास शीघ्र लौट जाऐं। उसी समय कामधेनु टैण्ट को फाड़कर सीधी ऊपर को उड़ चली। राजा ने गाय को गिराने के लिए गाय के पैर में तीर मारा। गाय के पैर से खून बहने लगा और पृथ्वी पर गिरने लगा। गाय घायल अवस्था में स्वर्ग में चली गई। जहाँ-जहाँ गाय का रक्त गिरा था, वहीं-वहीं तम्बाकू उग गया। फिर बीज बनकर अनेकों पौधे बनने लगे। संत गरीबदास जी ने कहा है कि:-

तमा + खू = तमाखू।
खू नाम खून का तमा नाम गाय। सौ बार सौगंध इसे न पीयें-खाय।।

भावार्थ है कि फारसी भाषा में ‘‘तमा’’ गाय को कहते हैं। खू = खून यानि रक्त को कहते हैं। यह तमाखू गाय के रक्त से उपजा है। इसके ऊपर गाय के बाल जैसे रूंग (रोम) जैसे होते हैं। हे मानव! तेरे को सौ बार सौगंद है कि इस तमाखू का सेवन किसी रूप में भी मत कर। तमाखू का सेवन गाय का खून पीने के समान पाप लगता है। मुसलमान धर्म के व्यक्तियों को हिन्दुओं से पता चला कि तमाखू की उत्पत्ति ऐसे हुई है। उन्होंने गाय का खून समझकर खाना तथा हुक्के में पीना शुरू कर दिया क्योंकि गलत ज्ञान के आधार से मुसलमान भाई गाय के माँस को खाना धर्म का प्रसाद मानते हैं। वास्तव में हजरत मुहम्मद जो मुसलमान धर्म के प्रवर्तक माने जाते हैं, उन्होंने कभी-भी जीव का माँस नहीं खाया था।

गरीब, नबी मुहम्मद नमस्कार है, राम रसूल कहाया।
एक लाख अस्सी कू सौगंध, जिन नहीं करद चलाया।।
गरीब, अर्स कुर्श पर अल्लह तख्त है, खालिक बिन नहीं खाली।
वै पैगंबर पाक पुरूष थे, साहेब के अबदाली।।

भावार्थ:- नबी मुहम्मद तो आदरणीय महापुरूष थे जो परमात्मा के संदेशवाहक थे। ऐसे-ऐसे एक लाख अस्सी हजार पैगंबर मुसलमान धर्म में (बाबा आदम से लेकर मुहम्मद तक) माने गए हैं। वे सब पाक (पवित्रा) व्यक्ति थे जिन्होंने कभी किसी पशु-पक्षी पर करद यानि तलवार नहीं चलाई। वे तो परमात्मा से डरने वाले थे। परमात्मा कृपा पात्रा थे। बाद में कुछ मुल्ला-काजियों ने माँस खाने की परम्परा शुरू कर दी जो आगे चलकर धार्मिकता का उपवाद बन गई। उसी आधार से सर्व मुसलमान भाई पाप को खा रहे हैं। फिर भ्रमित मुसलमानों ने तम्बाकू का सेवन (खाना, हुक्का बनाकर पीना) प्रारम्भ कर दिया। भोले हिन्दु धर्म के व्यक्तियों ने उनकी चाल नहीं समझी। उनके कहने से तमाखू का सेवन जोर-शोर से शुरू कर दिया। वर्तमान में तो यह पंचायत का प्याला बन गया है जो भारी भूल है। अज्ञानता का पर्दा है। इसे भूलकर भी सेवन नहीं करना चाहिए। संत गरीबदास जी ने फिर बताया है कि हे भक्त हरलाल जी! और सुन तमाखू सेवन के पाप:-

गरीब, परद्वारा स्त्राी का खोलै। सत्तर जन्म अंधा हो डोलै।।1
मदिरा पीवै कड़वा पानी। सत्तर जन्म श्वान के जानी।।2
मांस आहारी मानवा, प्रत्यक्ष राक्षस जान। मुख देखो न तास का, वो फिरै चैरासी खान।।3
सुरापान मद्य मांसाहारी। गमन करै भोगै पर नारी।।4
सत्तर जन्म कटत है शीशं। साक्षी साहेब है जगदीशं।।5
सौ नारी जारी करै, सुरापान सौ बार। एक चिलम हुक्का भरै, डूबै काली धार।।6
हुक्का हरदम पीवते, लाल मिलांवे धूर। इसमें संशय है नहीं, जन्म पीछले सूअर।।

उपरोक्त वाणियों का भावार्थ:-

वाणी सँख्या 1: में कहा है कि जो व्यक्ति अन्य स्त्राी से अवैध सम्बन्ध बनाता है, उस पाप के कारण वह सत्तर जन्म अंधे के प्राप्त करता है। अंधा गधा-गधी, अंधा बैल, अंधा मनुष्य या अंधी स्त्राी के लगातार सत्तर जन्मों में कष्ट भोगता है। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

वाणी सँख्या 2:- कड़वी शराब रूपी पानी जो पीता है, वह उस पाप के कारण सत्तर जन्म तक कुत्ते के जन्म प्राप्त करके कष्ट उठाता है। गंदी नालियों का पानी पीता है। रोटी ने मिलने पर गुह (टट्टी) खाता है। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

वाणी सँख्या 3:- जो व्यक्ति माँस खाते हैं, वे तो स्पष्ट राक्षस हैं। उनका तो मुख भी नहीं देखना चाहिए यानि उनके साथ रहने से अन्य भी माँस खाने का आदी हो सकता है। इसलिए उनसे बचें। वह तो चैरासी लाख योनियों में भटकेगा। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

वाणी सँख्या 4-5:- (सुरा) शराब (पान) पीने वाले तथा परस्त्राी को भोगने वाले, माँस खाने वालों को अन्य पाप कर्म भी भोगना होता है। उनके सत्तर जन्म तक मानव या बकरा-बकरी, भैंस या मुर्गे आदि के जीवनों में सिर कटते हैं। इस बात को मैं परमात्मा को साक्षी रखकर कह रहा हूँ, सत्य मानना। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

वाणी सँख्या 6:- एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने से भरने वाले को जो पाप लगता है, वह सुनो। एक बार परस्त्राी गमन करने वाला, एक बार शराब पीने वाला, एक बार माँस खाने वाला पाप के कारण उपरोक्त कष्ट भोगता है। सौ स्त्रिायों से भोग करे और सौ बार शराब पीऐ, उसे जो पाप लगता है, वह पाप एक चिलम भरकर हुक्का पीने वाले को देने वाले को लगता है। विचार करो तम्बाकू सेवन (हुक्के में, बीड़ी-सिगरेट में पीने वाले, खाने वाले) करने वाले को कितना पाप लगेगा? इसलिए उपरोक्त सर्व पदार्थों का सेवन कभी न करो। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

वाणी सँख्या 7:- समाज के व्यक्तियों को देखकर कुछ व्यक्ति हुक्का या अन्य नशीली वस्तुऐं सेवन करने लग जाते हैं। यदि सत्संग सुनकर बुराई त्याग देते हैं तो वे जीव पिछले जन्म में भी मनुष्य थे। उनके अंदर नशे की गहरी लत नहीं बनती। परंतु जो बार-बार सत्संग सुनकर भी तम्बाकू आदि नशे का त्याग नहीं कर पाते, वे पिछले जन्म में सूअर के शरीर में थे। सूअर के शरीर में बदबू सूंघने से तम्बाकू की बदबू पीने-सूंघने की गहरी आदत होती है। वे शीघ्र हुक्का व अन्य नशा नहीं त्याग पाते। वे अपने अनमोल मानव शरीर रूपी लाल को मिट्टी में मिला रहे हैं। उनको अधिक सत्संग सुनने की राय दी जाती है। निराश न हों। सच्चे मन से परमात्मा कबीर जी से नशा छुड़वाने की पुकार प्रार्थना करने से सब नशा छूट जाता है। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

तम्बाकू के विषय में अन्य विचार |

तम्बाकू यानि हुक्का पीने वालों की स्थिति बताई है:-
(संत गरीबदास जी के ग्रन्थ में ‘अथ तमाखू की बैंत’ नामक अध्याय में)

पित बाई खांसी निबासी निबास। कफ दल कलेजा लिया है गिरास।।
काला तमाखू अरू गोरा पिवाक। दस बीस लंगर जहाँ बैठे गुटाक।।
बाजे नै गुड़ गुड़ अरू हुक्के हजूम। कोरे कुबुद्धि बीसा हैं न सूम।।
बांकी पगड़ी अरू बांकी ही नै खुद डूबै अरू डुबोए है कै।
गुटाकड़ अटाकड़ मटाकड़ लहूर। एक बेठैगा अड़कर एक बेठैगा दूर।।
पीवै तमाखू पड़ै कर्म मार। अमली के मुख में मुत्रा की धार।।
कड़वा ही कड़वा तू करता हमेश। कड़वा ही ले प्यारे कड़वा ही पेश।।
कामी क्रोधी तूं लोभी लबूट। बचन मान मेरा धूंमा न घूंट।।
हुक्का हरामी गुलामी गुलाम। धनी के सरे में न पहुँचे अलाम।।
पामर परम धाम जाते न कोई। झूठे अमल पर दई जान खोई।।
मुरदा मजावर हरामी हराम। पीवैं तमाखू सो इन्द्री के गुलाम।।
अज्ञान नींद न सो उठ जाग, पीवैं तमाखू गए फुटि भाग।।
भांग तमाखू पीवैं ही, सुरापान से हेत। गोसत मिट्टी खायकर जंगली बनैं प्रेत।।
गरीब, पान तमाखू चाबहीं, सांस नाक में देत। सो तो अकार्थ गए, ज्यों भड़भूजे का रेत।।
भांग तमाखू पीवहीं, गोसत गला कबाब। मोर मृग कूं भखत हैं, देंगे कहां जवाब।।
भांग तमाखू पीवते, चिसम्यों नालि तमाम। साहिब तेरी साहिबी, जानें कहाँ गुलाम।।
गऊ आपनी अम्मा है, इस पर छुरी ना बाहय। गरीबदास घी दूध को, सब ही आत्म खाय।।

भावार्थ:- उपरोक्त वाणियों का भावार्थ है कि मानव शरीर को आॅक्सीजन की आवश्यकता है। उसके स्थान पर तम्बाकू का धुँआ (कार्बनडाईआक्साइड) प्रवेश करता है तो उनको खाँसी रोग हो जाता है। पित्त तथा बाई (बाय) का रोग हो जाता है। हुक्का पीने वाले का बैठने का स्टाईल बताया है कि हुक्का पीने वाले एक-दो तो हुक्के के निकट बैठेंगे। एक कुछ दूरी पर बैठेगा और कहेगा कि सरकाइये थोड़ा-सा। दूसरे उसकी ओर हुक्का देंगे। फिर नै (नली जिससे धुआं खींचते हैं) गुरड़-गुरड़ बाजैगी। आप तो हुक्का पीकर डूबे हैं और छोटे बच्चे भी उनको देखकर वही पाप करके नरक की काली धार में डूबेंगे, जो तम्बाकू पीते हैं, उनके तो भाग फूटे ही हैं। अन्य को तम्बाकू पीने के लिए उत्प्रेरक बनकर डुबोते हैं। उपरोक्त बुराई करने वाले तो अपना जीवन ऐसे व्यर्थ कर जाते हैं जैसे भड़भूजा बालु रेत को आग से खूब गर्म करके चने भूनता है। फिर सारा कार्य करके रेत को गली में फैंक देता है। इसी प्रकार जो मानव उपरोक्त बुराई करता है, वह भी अपने मानव जीवन को इसी प्रकार व्यर्थ करके चला जाता है। उस जीव को नरक तथा अन्य प्राणियों के जीवन रूपी गली में फैंक दिया जाता है। जो व्यक्ति उपरोक्त पाप करते हैं, वे भगवान के दरबार में क्या जवाब देंगे यानि बोलने योग्य नहीं रहेंगे। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

फिर कहा है कि गाय अपनी माता के तुल्य है जिसका सब धर्म-जाति वाले दूध-घी पीते-खाते हैं। इसलिए गाय को मत मारो। विषय तम्बाकू का चल रहा हैः-

भक्ति मार्ग में तम्बाकू सबसे अधिक बाधा करता है। जैसे अपने दोनों नाकों के मध्य में एक तीसरा रास्ता है जो छोटी सूई के नाके जितना है। जो तम्बाकू का धुँआ नाकों से छोड़ते हैं, वह उस रास्ते को बंद कर देता है। वही रास्ता ऊपर को त्रिकुटी की ओर जाता है जहाँ परमात्मा का निवास है। जिस रास्ते से हमने परमात्मा से मिलना है, उसी को तम्बाकू का धुँआ बंद कर देता है। हुक्का पीने वालों को देखा है, प्रतिदिन हुक्के की नै (नली) में लोहे की गज (एक पतला-सा सरिया) घुमाते हैं जिनमें से धुँए का जमा हुआ मैल निकलता है। वह नै रूक जाती है। मानव जीवन परमात्मा प्राप्ति के लिए ही मिला है। परमात्मा को प्राप्त करने वाले मार्ग को तम्बाकू का धुँआ बंद कर देता है। इसलिए भी तम्बाकू भक्त के लिए महान शत्राु है। वैसे भी हुक्का पीने वाले भी मानते हैं कि तम्बाकू अच्छी चीज नहीं है। जब कोई छोटा बच्चा अपने दादा-ताऊ, पिता-चाचा को हुक्का पीते देखता है तो वह भी नकल करता है। हुक्के को पीने लगता है तो बड़े व्यक्ति जो स्वयं हुक्का पीते हैं, उस बच्चे को धमकाते हैं कि खबरदार! अगर हुक्का पीया तो। यह अच्छा नहीं है। यदि आप जी इसे अच्छा पदार्थ मानते हैं तो बच्चों को भी पीने दो। आप मना करते हैं तो मानते हो कि यह अच्छा नहीं है, हानिकारक है। सर्दियों में एक मकान में छोटे बच्चे भी सो रहे होते हैं। उसी में हुक्का पीने वाला हुक्का पी रहा होता है। वह स्वयं तो पाप कर ही रहा है, अपने परिवार को धुँआ पिलाकर पाप का भागी बना रहा है। छोटे बेटा-बेटी को दादा-पिताजी अपने हिस्से के दूध से पिलाने की कोशिश करता है कि ले, थोड़ा ओर पी ले, देख तेरी चोटी बढ़ रही है, और पी जा। इस प्रकार उसे दूध का गिलास पिलाकर दम लेता है क्योंकि दूध बच्चे के लिए लाभदायक है। हुक्का-बीड़ी पीने से मना करता है तो दिल तो कहता है कि तम्बाकू पीना बुरा है, परंतु समाज में यह बुराई आम हो चुकी है। इसलिए पाप नहीं लगता। जैसे कई कबीले माँस खाते हैं, उनके बच्चों के लिए वह पाप आम बात है। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

इसी प्रकार तम्बाकू पीना भी महापाप है, परंतु परम्परा पड़ गई है, पाप नहीं लगता। इसे त्याग देना चाहिए। भक्त हरलाल जी ने उसी दिन हुक्का तोड़ दिया। चिलम फोड़ दी। सर्व परिवार को वे सब बातें सुनाई। नाम-दीक्षा दिलाई। कई पीढ़ी तक बेरी के उन परिवारों में हुक्का नहीं था। बाद में सत्संग के अभाव में फिर से कुछ-कुछ पीने लगे हैं।

तम्बाकू से गधे-घोड़े भी घृणा करते हैं |

Even Donkeys & Horses Loathe Tobacco (Way of Living)

📜एक दिन संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर वाले) किसी कार्यवश घोड़े पर सवार होकर जींद जिले में किसी गाँव में जा रहे थे। मार्ग में गाँव मालखेड़ी (जिला जींद) के खेत थे। उन खेतों में से घोड़े पर बैठकर जा रहे थे। गेहूँ की फसल खेतों में खड़ी थी। घोड़ा रास्ता छोड़कर गेहूँ की फसल के बीचों-बीच चलने लगा। खेतों में फसल के रखवाले थे। वे लाठी-डण्डे लेकर दौड़े और संत गरीबदास जी को मारने लगे कि तेरा दिमाग खराब हो गया है क्या? हमारी फसल का नाश करा दिया। घोड़े को सीधा नहीं चला सकता। ज्यों ही उन्होंने संत गरीबदास जी को लाठी मारने की कोशिश की तो उनके हाथ ऊपर को ही जाम हो गए। सब अपनी-अपनी जगह पत्थर की मूर्ति के समान खड़े हो गए। पाँच मिनट तक उसी प्रकार रहे। फिर संत गरीबदास जी ने अपना हाथ आशीर्वाद देने की स्थिति में किया तो उनकी स्तंभता टूट गई और सब पीठ के बल गिरे। लाठियाँ हाथ से छूट गई। ऐसे हो गए जैसे अधरंग हो गया हो। रखवालों को समझते देर नहीं लगी कि यह सामान्य व्यक्ति नहीं है। सबने रोते हुए क्षमा याचना की। तब संत गरीबदास जी ने कहा कि भले पुरूषो! क्या राह चलते व्यक्ति के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं। मारने को दौड़े हो। पहले तो यह जानना चाहिए था कि किस कारण से घोड़ा फसल के बीच में ले गए हो? वे किसान बोले, अब बताईये जी, घोड़ा किस कारण से फसल में चला गया था? संत गरीबदास जी ने पूछा कि इस खेत में इस फसल से पहले क्या बीज रखा था। उन्होंने बताया कि ज्वार बोई थी। उससे पहले क्या बोया था? उन्होंने बताया कि तम्बाकू बीजा था। संत गरीबदास जी ने बताया कि उस तम्बाकू की बदबू अभी तक इस खेत में उठ रही है। उसकी बदबू से परेशान होकर मेरा घोड़ा रास्ता त्यागकर दूर से जाने लगा। उस तम्बाकू को आप पीते हो, आप तो पशुओं से भी गये-गुजरे हो। सुन लो ध्यान से! इस के बाद इस गाँव में कोई व्यक्ति हुक्का नहीं पीएगा, तम्बाकू सेवन नहीं करेगा। यदि आज्ञा का पालन नहीं हुआ तो गाँव को बहुत हानि हो जाएगी। उस समय तो सबने हाँ कर दी। संत के चले जाने के पश्चात् बोले कि भर ले न हुकटी! जब होकटी (छोटा हुक्का) भरने लगे तो हाथ से चिलम छूटकर फूट गई। दूसरी होकटी की चिलम लाए, वह भी हाथ में ही चूर-चूर हो गई। खेत में जितनी होक्की थी, सब टूट गई। चिलम भी फूट गई। रखवाले डर गए कि उस संत की लीला है। गाँव गए तो गाँव के सब हुक्के टूट गए, चिलम फूट गई। पूरे गाँव में हड़कंप मच गया। भय का वातावरण हो गया। रखवाले गाँव में आए तो कारण का पता चला। उस दिन के पश्चात् गाँव में वर्तमान तक हुक्का (तम्बाकू सेवन) कोई नहीं पीता। गाँव का नाम है ‘‘मालखेड़ी’’। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

हुक्का पीने वाले कहते हैं कि ले मेरे पास कड़वा तम्बाकू है, यह भर ले चिलम में। दूसरा कहता है कि यह मेरे वाला अधिक कड़वा है। संत गरीबदास जी ने बताया है कि मृत्यु के उपरांत यम के दूत उस कड़वा तम्बाकू पीने वाले के मुख में मूत देते हैं। कहते हैं कि तू अधिक कड़वा-कड़वा तम्बाकू पीना चाहता था, ले प्यारे! कड़वा मूत पी ले। मुत्र की धार उसका मुख खोलकर मुख में लगाते हैं। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई

संत गरीबदास जी ने यह तो एक लीला करके बुराई छुड़ाई थी। ज्ञान से जो प्रभाव पड़ता है, वह सदा के लिए बुराई छुड़ा देता है। ज्ञान सत्संग से होता है। सत्संग सुनने की रूचि पैदा करो। सत्संग सुनो।

निवेदन:- उपरोक्त बुराई सर्वथा त्याग दें। इससे जीवन का मार्ग सुहेला हो जाएगा।

आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं। तम्बाकू की उत्पत्ति कैसे हुई
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1 ॐ मंत्र का रहस्य 2 भगवत गीता के गूढ़ रहस्य 3 क्या है वास्तविक आजादी 4 कर नैनो दीदार 5 रक्षाबंधन कैसे मनाएं 6 तंबाकू की उत्पत्ति कथा 7 नशा करता है नाश 8 गृहस्थ जीवन कैसे जीना चाहिए 9 भगवान का संविधान 10 सतगुरु हेलो मारियो रे 11 सुखमय जीवन की दिनचर्या 12 दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार 13 ऊंट की कहानी 14 रविदास जी की वाणी 15 अन्नपूर्णा स्तोत्रम 16 भगवान को कैसे प्रसन्न करें 17 गोस्वामी समाज का इतिहास 18 शिवरात्रि पर विशेष 19 क्या कबीर साहेब भगवान है? 20 शंकराचार्य जी का जीवन परिचय 21 यह है वास्तविक गीता सार 22 आत्मबोध जीव ईश और जगत 23 आध्यात्मिक ज्ञान प्रश्नोत्तरी 24 मकर सक्रांति 2022 25 दहेज प्रथा एक अभिशाप 26 कबीर इज गॉड इन हिंदी 27 भक्तों के लक्षण 28 बलात्कार रोकने के कुछ अचूक उपाय 29 श्राद्ध पूजन की विधि 30 ब्रह्मा विष्णु महेश की उत्पत्ति कैसे हुई 31 गणेश चतुर्थी मराठी 32 सत भक्ति करने के अद्भुत लाभ 33 हजरत मोहम्मद नु जीवन परिचय 34 हजरत मोहम्मद जीवन परिचय बांग्ला 35 शराब छुड़ाने का रामबाण इलाज 36 आध्यात्मिक प्रश्न और उत्तर 37 सृष्टि रचना के रहस्यों का खुलासा 38 फजाईले आमाल के हकीकत 39 सच्चे संत के क्या लक्षण होते हैं? 40 अल्लाह कैसा है कुरान पाक में 41 कौन थे वीर विक्रमादित्य 42 कौन है सृष्टि का रचियता 43 आत्महत्या कोई समाधान नहीं है!  44 कबीर सर्वानंद ज्ञान चर्चा 45 हज़रत ईसा मसीह कौन थे?  46 हज़रत मोहम्मद साहब की जीवनी  47 फजाईले आमाल के हकीकत 

 

bhaktigyans

My name is Sonu Patel i am from india i like write on spritual topic

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